म्हारा वीर

श्री बालकवि बैरागी के मालवी श्रम-गीत संग्रह
‘अई जावो मैदान में’ की दसवीं कविता


यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।



म्हारा वीर

जदी आँगणियाँ में आजादी को उड़ीग्यो अबीर।
तो भाग के भरोसे मती बैठो म्हारा वीर

कतरई ने सूली पे सेजाँ सजई है
कतरी ही बेन्यां की राख्याँ रिसई है
लाखाँ ही लोर्याँ ने झोर्याँ भुलई है
हज्जाराँ गोर्याँ ने होर्याँ न्ही गई है
जदी जईने दिल्ली पोंचो आपणो वजीर
तो भाग के भरोसे मती बेठो म्हारा वीर
जदी आँगणियां में आजादी को.....

काँधा पर आया वजन पर जवानी
लाहौर वारा वचन पर जवानी
देख थारा तन पर ने मन पर जवानी
राधा तो राधा किसन पर जवानी
ब्रज थारो डूबे-डूबे दौड़ रे अहीर
भाग के भरोसे मती बैठो म्हारा वीर
जदी आँगणियाँ में आजादी को.....

याद आवे आज म्हने झाँसी की राणी
मोराँ पर ममता ने जोर पर जवानी
दाँत में लगाम और हाथ में भवानी
जूझी तो धूजीगी तोपां तूफानी
फावड़ो तो पकड़ो वणका लाड़ला रणधीर
भाग के भरोसे मती बैठो म्हारा वीर
जदी आँगणियाँ में आजादी को....

हिरदा में हिम्मत का डेरा लगावो
मेहनत का मोतीड़ा माथे सजावो
परदेश में मती झोर्याँ बिछावो
यूँ मत लुटो और यूँ मत ठगावो
जावे है सोनो ने आवे कथीर
भाग के भरोसे मती बेठो म्हारा वीर
जदी आँगणियाँ में आजादी को.....

देसड़लो अपणो यो मानी गुमानी
आखा जगत को दाता औ दानी
खेत-खेत गईर्या कबीरा की वाणी
डग-डग पे रोटी ने पग-पग पे पाणी
फेर यो अमीर क्यूँ दीखे रे फकीर
भाग के भरोसे मती बैठो म्हारा वीर
जदी आँगणियाँ में आजादी को.....

हिम्मत जो आज थी कर लो रे वीरा
नक्खाँ से परबत का फाड़ी दो लीरा
गंगा माँ, गोमा या गेरी गम्भीरा
मेहनत का माधव की वेई जावे मीरा
आसा लगावे थाँ से जमना को तीर
भाग के भरोसे मती बेठो म्हारा वीर
जदी आँगणियाँ में आजादो को.....

धारी ले मन में जो दो हाथ वारा
खोली दे बैकुण्ठ का बन्द तारा
रेत में वेवई दे अमरत की धारा
समदर में पग-पग पे बाँधी दे पाराँ
पारस ती कम कोन्‍ही थाँको सरीर
भाग के भरोसे मती बेठो म्हारा वीर
जदी आँगणियाँ में आजादी को.....
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह) 
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन, 
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन





यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।











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