इत्ते सारे नजारे

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की बारहवीं कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।




इत्ते सारे नजारे

ये लाल गुलाल ऊषा
चहकते पंछी
महकते फूल
चटखती कलियाँ
आवारा भटकती हवा
रँभाती गैया
ललकते बछड़े
किलकते बच्चे
और
कुदरत के
इत्ते सारे नज़ारे
सबके सब सवा
सोलह आने सच्चे।
तुम्हारे अपने
हिये की हुमक
चूड़ियाँ खनकाती
तुम्हारी अपनी
सुहागन के
चेहरे का नमक।
अम्माँ की तस्वीर के पीछे
घोंसला बनाती गोरैया
पापा! पापा! कहकर
तुम्हारी पप्पी लेती
नन्ही-मुन्नी जुन्हैया।
ये सब मिलकर भी
तोड़ नहीं पाये
तुम्हारी उदासी
दे नहीं पाये
तुम्हे हल्की-सी
मुस्कान
तो समझो
फिर तुम्हारा घर
घर ही नहीं है
है बस किराये का मकान।
बहुत चुक गया किराया
पोंछो अपनी उदासी
कब समझोगे
बात ये जरा-सी कि
पड़े-पड़े अपने आप से लड़ना
मनुष्य का काम नहीं है
खुद पर खीजना, झल्लाना
और हर किसी पर चिल्लाना 
किसी अवतार, फरिश्ते
का पैगाम नहीं है।
उठो भी
अब खड़े हो जाओ
चींटियाँ तक चल पड़ी हैं
अपनी मंजिल की तरफ
यार!
तुम चींटी से तो जरा-से
बड़े हो जाओ!
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल










यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।









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