चल मतवाले

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की पैंतीसवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।




चल मतवाले

चल मतवाले उन राहों पर, जिन पर चलते बलिदानी
शोषित पीड़ित इन्सानों की, बदलें आज कहानी
ओ मतवाले ओ बलिदानी
व्यर्थ न जाये तेरी कहानी
नहीं किसी का तू मुहताज
तू है दुनिया का सरताज

यह न समझना आजादी का, चाँद यूँ ही उग आया है
इस पर कितनी ही पूनों ने, सुख-सिन्दूर लुटाया है
चारों ओर लगे हैं राहु, तेरे चन्दा प्यारे पर
रोज-रोज मँडराती मावस, इस गोरे उजियारे पर
यह पूनों अब जावे ना
मावस फिर से आवे ना
तेरे हाथों में है लाज
तू है दुनिया का सरताज

आँगन में आ बैठा फागुन, फूल गई फुलवारियाँ
किन्तु द्वार के भीतर अब भी, चमक रही चिनगारियाँ
हाय अभी तक कितनों से ही, रामराज यह दूर है
कोटि-कोटि हैं बेबस अब भी, लाख-लाख मज़बूर है
सबका रोष मिटा दे तू
सब में जोश जगा दे तू
बदल बागियों की आवाज
तू है दुनिया का सरताज

देख मुहूरत बीता जाता, बैठा क्यों मुँह लटकाये
शूर वही जो सबसे पहिले, तूफानों से टकराये
कदमों में ला तेजी रे भाई, शीश हथेली पर ले ले
थाम तिरंगा आगे हो जा, उमड़ पड़ेंगे अलबेले
झोंपड़ियों को महल बना
महलों की कर नव रचना
अमन-चमन का आया राज
तू है दुनिया का सरताज
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)












यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।






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