अमन का सिपाही

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की बीसवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।




अमन का सिपाही

ले के झण्डा ये हिन्दी वतन का
आया-आया सिपाही अमन का
सच्चा वादे का, पक्का लगन का
आया-आया सिपाही अमन का
इसकी वर्दी में तकली का ताना
इसने चरखे से पाया है बाना
इसके ओठों पे कौमी तराना
इसने सीखा है बढ़ते ही जाना
बदला इतिहास उजड़े चमन का
आया-आया सिपाही अमन का

इसने जबसे तिरंगी सम्हाली
जुल्मी सत्ता को पल में झुका ली
इसने घर-घर मना दी दिवाली
अपने कदमों में मंजिल बुला ली
इसने सीखा निभाना वचन का
आया-आया सिपाही अमन का

इसने हिंसा की हस्ती मिटा दी
इसने सबको अहिंसा सिखा दी
इसने वो राह जग को दिखा दी
जिससे दुश्मन ने इसको दुआ दी
इसको कहते हैं दुश्मन दमन का
आया-आया सिपाही अमन का

इसकी धड़कन में बापू की बानी
इसमें वल्लभ के खूँ की कहानी
जो है नेताजी सा स्वाभिमानी
जिसमें नेहरू की नटखट जवानी
लाया सन्देश विजया बहिन का
आया-आया सिपाही अमन का
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)










यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।




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