मुझसे यह नहीं होगा!

 

मुझसे यह नहीं होगा!

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की दूसरी कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।




मुझसे यह नहीं होगा!

मुँह उनका भी खुलता है
मुँह मेरा भी खुलता है
अन्तर बस इत्ता-सा है
कि वे मुँह खोलते हैं
आपके मुँह का कौर
छीन कर खाने के लिये
और में मुँह खोलता हूँ
आपकी पीड़ा गाने के लिये।।

सफलता का दावा
वे भी करते हैं
सफलता का दावा
मैं भी करता हूँ।।
वे बड़े मजे से खा लेते हैं
मैं बड़े मजे से गा लेता हूँ
सफल हम दोनों ही हैं।।

पर आप?
आप उनसे डरते हैं
इसलिए मुझसे दूर रहते हैं
मेरे प्रति घृणा से भरपूर रहते हैं।

शिकायत आपकी ये है
कि मैं नाहक ही हो हल्ला करता हूँ
क्यों नहीं आपकी पीड़ा को
मैंने मन ही मन
‘स्वान्तः सुखाय’ गा लिया?
गाँव-गाँव उसे गाकर
क्यों नहीं भुना लिया?

और वे?
वे, बन्द करना चाहते हैं
मेरा मुँह ।।

पर क्या मैं आपकी तरह डरकर
उनसे लड़ना छोड़ दूँ?
सौदामिनी में सनी मेरी कलम को
किसी सौदे में तोड़ दूं?

ना!
मुझसे यह नहीं होगा
जो वे चाहते हैं
वह नहीं होगा।।

एक मुकाम पर
आप और वे
एकदम एक हैं
बिल्कुल-बिल्कुल एक।।

वे भी और आप भी
चाहते यही हैं कि
दुःख, फिर वह चाहे आपका हो या
और किसी का
भले ही हो वह मेरा अपना
चुपचाप अकेले में मैं उसे रो लूँ
पर गाऊँ नहीं
उनके या आपके दायरे मैं आऊँ नहीं ।।
उन्हें और आपको
छोड़ दूँ अपने-अपने हाल पर
और अगर कसमसा उठे
कोई कविता
तो तमाचा मार लूँ
अपने ही गाल पर।।

ना!
मुझसे
यह नहीं होगा
आप जो चाहते हैं
वह नहीं होगा।।
क्रौंच वध देखूँ और
चुप भी रहूँ?
और खुद को वाल्मीकि का वारिस
भी कहूँ?

ना!
मुझसे यह नहीं होगा
जो आप चाहते हैं
वह नहीं होगा।।
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल



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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।






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