धरती को गीत

श्री बालकवि बैरागी के मालवी श्रम-गीत संग्रह
‘अई जावो मैदान में’ की चौदहवीं कविता


यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।




धरती को गीत

आवो धरती का गीत गावाँ रे
धरती का गीत
म्हारी जरणी का गीत
म्हारी माड़ी का गीत गावाँ रे
आओ धरती का गीत गावाँ रे

खोरा में जण के ई जीव हँसे खेले
बारकाँ ने छाती ती परमाँ न्ही मेले
पाप को ने पुण्य को यो भारी भार झेले
अण का गरभ में रतन
छाती पे बेठो गगन
अंग-अंग भारी थोड़ो भार घटावाँ रे
आवो धरती का गीत गावाँ रे

अण से बड़ो कूण दाता औ’ दानी
लेवे तो मुट्ठी ने देवेे है माणी
अरबाँ ने खरबाँ ने पारी री राणी
फल देवे फूल देवे
रोज वगर भूल देवे
वाँट-चूँट जीमाँ और सबने जिमावाँ रे
आवो धरती का गीत गावाँ रे

सूरज बरे ने गरे चाँद तारा
ठारे हियारा ने बारे उन्हारा
रोम-रोम फोड़े चौमासा की धाराँ
जोगण तपस्या करे
तप ती कदी न्हीं टरे
अण का चरण में चालो ऊमर चढ़ावाँ रे
आवो धरती का गीत 
गावाँ रे

गेरा-गेरा समदर ई रूड़ा रूपारा
नरमाल नद्दियाँ ने नारा कुँवारा
सरवर ने झरझरता झरना की धारा
तो भी अणकी प्यास जागे
पल-पल पसीनो माँगे 
मेहनत को खारो पाणी हिलमिल चखावाँ रे
आवो धरती का गीत गावाँ रे

जीवो जटा तक हालरो हुणावे
अन्न दे धन्न दे या वारी-वारी जावे
मौत आयाँ माड़ी म्हारी कारजे लगावे
थोड़ो सो न्याय करो
ममता का घाव भरो
घावाँ पे सेवा की ठण्डी लूणी लगावाँ रे
आवो धरती का गीत गावाँ रे
लाखाँ ही धरमा ने धारे धराणी
(पण) दूध को दूध और पाणी को पाणी
पीड़ा अणी की कणी ने न्ही जाणी
खावा में चार रोटी
राखो काँ नीऽत खोटी
चालो धरम ने बजार में ती पाछो लावाँ रेे
आवो धरती का गीत गावाँ रे

अणका ही पूत करे अणती बेईमानी
जुद्ध लड़े सिद्ध वणे शाणा ने ज्ञानी,
खेल हाँटे छाती फाटे तो भी छानी-मानी
मनकाँ ती प्रीत जोड़ो
गिद्धाँ की रीत छोड़ो
जीवन को गीत ऊँची टीप मे उठावाँ रे
आवो धरती का गीत गावाँ रे
बदली द्यो तार-तार थाने अणका तन को
फेर भी नही हाल्यो है राम अणका मन को
रोम-रोम अणको है पक्को वचन को
जाया आपी अण का
दबेल अण का ऋण का
ईमान गाठो राखी थोड़ो कर्जाे चुकावाँ रे
आवो धरती का गीत गावाँ रे

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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह) 
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन, 
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन





यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।











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