लहरायेगा अमर तिरंगा

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की अट्ठाईसवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।




लहरायेगा अमर तिरंगा

लहरायेगा अमर तिरंगा, इज्जत और ईमान से
टकरा लेंगे हम मतवाले, हर आँधी-तूफान से
खून पसीना देकर हमने, खुद इतिहास बनाया है
टकराया है जो भी हमसे, आखिर में पछताया है
बेशक कोई आज पूछ ले, धरती से, असमान से
टकरा लेंगे हम मतवाले.....

जूझ रही है नई जवानी, आज अँधेरी रातों से
हर पत्थर को मिली जिन्दगी, इन फौलादी हाथों
नया पसीना लहरें लेता, नई निराली झान से
टकरा लेंगे हम मतवाले.....
जंग हमारा पहिला दुश्मन, हमने उसे दबाया है
सिवा हमारे कहो जहाँ में, किसने अमन लुटाया है
जी हाँ, ऐटम शरमाता है, केवल हिन्दुस्तान से
टकरा लेंगे हम मतवाले.....
कौन हमारी बनती बाजी, देखें आज बिगाड़ेगा
जिस उपवन के माली हम हैं, उसको कौन उजाड़ेगा
सौ-सौ बार समझ लेंगे हम, इसके लिये जहान से
टकरा लेंगे हम मतवाले.....
जब तक अम्बर के आँचल में, सूरज, चाँद, सितारे हैं
नये खून में तब तक दम है, तब तक हम अंगारे हैं
तब तक सारा देश जियेगा, गौरव और गुमान से
टकरा लेंगे हम मतवाले.....
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)










यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।






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