पता नहीं था

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की बाईसवीं कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।




पता नहीं था

इतने बौरायेंगे आम - पता नहीं था।
छिन जायेगा चैन तमाम - पता नहीं था।

सारा दिन बस इन्हें निहारो
सुषमा पीकर शाम गुजारो
फिर भी नहीं कटेगी शाम - पता नहीं था।
इतने बौरायेंगे आम - पता नहीं था।

सुनिए कोयल की कविताएँ
चाहे कुछ भी समझ न पाएँ
तब भी गायेगी अविराम - पता नहीं था।
इतने बौरायेंगे आम - पता नहीं था।

देखो तो भँवरों की हरकत
कैसी कर दी तितली की गत
टेसू होंगे यूँ बदनाम - पता नहीं था।
इतने बौरायेंगे आम - पता नहीं था।

सरसों सारी हुई सुनहरी
आखिर रति की चोली ठहरी
ऋतु होगी इतनी उद्दाम - पता नहीं था।
इतने बौरायेंगे आम - पता नहीं था।

अली, कली में कानाफूसी
इसमें काहे की कंजूसी
काम करेगा ऐसे काम -पता नहीं था।
इतने बौरायेंगे आम-पता नहीं था। 
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल









यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।











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