यह भूमा

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की पचीसवीं कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।




यह भूमा
 

पंछी गूँगे हो जायेंगे, हर डाली मर जायेगी
हरियाली मर गई अगर तो, खुशहाली मर जायेगी

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यह भूमा, यह धरती माता, मात्र एक नक्षत्र नहीं है
अन्धे, पागल विध्वंसो का कोरा अनुमति-पत्र नहीं है
लोकगीत है महाकाव्य है, किसी अलौकिक निर्माता का
बूँद-बूँद यह छन्दामृत है, सिद्ध, सुरीले अनुगाता का
नील गगन की झिलमिल झालर, यह लाली मर जायेगी?
हरियाली मर गई अगर तो खुशहाली मर जायेगी
पंछी गूँगे हो जायेंगे... 

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अन्तरिक्ष की चौपालों पर, शोक सभाएँ उपग्रह की
बलिहारी है मानव! तेरे, इस अनमोल अनुग्रह की
महाशून्य के आँगन तक को, इतना दूषित कर डाला
दम्भ सहित फिर भी कहता है, परम विभूषित कर डाला
श्याम-घटाएँ, मेघ-सुताएँ, रूपाली मर जायेंगी?
हरियाली मर गई अगर तो खुशहाली मर जायेगी
पंछी गूँगे हो जायेंगे... 

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सागर चिन्तित, सरिता चिन्तित, चिन्तित कोना-कोना है
पता नहीं अब इन्द्रधनुष का, रूप-रंग क्या होना हैं?
दिशा-दिशा चिन्तित बैठी है, अम्बर उन्मन-उन्मन है
पत्ता-पत्ता काँप रहा है, विचलित मन वृन्दावन है
क्या वेदों की चरम चिरन्तन, रखवाली मर जायेगी?
हरियाली मर गई अगर तो खुशहाली मर
पंछी गूँगे हो जायेंगे..

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वल्गा खींचों उस तुरंग की, जो विज्ञान कहाता है
मानव में सोये दानव को, जो हर रोज जगाता है
माँ वसुधा की सुधा सनातन, अलख पुरूष की थाती है
इसीलिये यह धरती माता, सब की माँ कहलाती है
कनक-कटोरी, माँ-पीयूषा, पय-प्याली मर जायेगी?
हरियाली मर गई अगर तो, खुशहाली मर जायेगी
पंछी गूँगे हो जायेंगे...
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल








यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।












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