हुणजे रे मोट्यार

 



श्री बालकवि बैरागी के मालवी श्रम-गीत संग्रह
‘अई जावो मैदान में’ की बाईसवीं कविता


यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।



हुणजे रे मोट्यार

यो कूण पसीनो पूँछे
यो आलस कूण मरोड़े
यो कूण कुदाली फेंके
और काम हाथ को छोड़े

अरे हुणजे रे मोट्यार
थारा चारण की ललकार
मती फेंक थारा हाथ की कुदाली रे
अबे शुरू व्ही परीक्षा थारी रे
अरे हुणजे रे मोट्यार

अणछत्ताँ ही उठी वादरी सूरज ने निगलीगी
आँसू ही आँसू ती आखी फुलवारी हगलीगी
चाऽरी आड़ी लागी लाय
कई केऽवा में न्हीं आय
गूँगी वेईगी है वाचा बिचारी रे
अब शुरु व्ही परीक्षा थारी रे
अरे हुणजे रे मोट्यार

मन मकरायाँ खूब करीली खूब करी अणचाही रे
या ले थारा आगणियाँ में अम्मावस इतराई रे
हूझे कोनी खुद को हाथ
आखी दुनिया काड़े दाँत
छोड़ आलस की पापण खुमारी रे
अबे शुरु व्ही परीक्षा थारी रे
अरे हुणजे रे मोट्यार

धीमा पड़ न्हीं जावे घुघरा आज
नहर का नीर का
हल ती हाँचा आखर लिखजे
खेताँ को तकदीर का
आला वेईग्या माँ का गाल
थोड़ो वेगो वेगो चाल
छोड़ आलस की पापण खुमारी रे
अबे शुरू व्ही परीक्षा थारी रे
हुणजे रे मोट्यार

फूल पात कुम्हलई नही जावे देख थारा वाग का
सुर नही छूटी जावे थारा फागणिया का राग का
टूटी जावे कोन्ही ताल
थारा साज ने सम्हाल
अणफूली न्हीं सूखे कोई डारी रे
अबे शुरू व्ही परीक्षा थारी रे
अरे हुणजे रे मोट्यार

जद तक आवा वारी पीढ़ी न्ही ले जिम्मेवारी रे
वटा तलक तो करनी वेगा कण कण की रखवारी रे
या तो सूली पर है सेज
अण पर होवे ऊ मरेज
जो जागे वणी की बलिहारी रे
अबे शुरू व्ही परीक्षा थारी रे
अरे हुणजे रे मोट्यार
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह) 
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन, 
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन






यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।

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