देवत्व दाँव पर लगा हुआ है

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की सत्ताईसवीं/अन्तिम कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।




देवत्व दाँव पर लगा हुआ है

ओ समय-हंस!
कछ कृपा करो
यह नीर-क्षीर की बेला है

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सम्पूर्ण लोक में मति-भ्रम है, मति-भ्रम भी अच्छा खासा है
कुछ समझ नहीं पड़ता युग को, यह कैसा क्रूर कुहासा है?
गतिवान चरण गतिहीन हुए, ठिठकाव ठाठ से ठठा रहा
प्राणों का पंछी घायल है, क्रन्दन करता छटपटा रहा
फैलाओ पंख, उड़ान भरो
ये मोती चुगना बन्द करो
यह नीर-क्षीर की बेला है
निर्णय दो, न्याय-प्रबन्ध करो।
ओ समय-हंस!
कुछ कृपा करो
यह नीर-क्षीर की बेला है।

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कुछ निरपराध तुलसी चन्दन, इस दावानल ने दहा दिये
बाढ़ों ने तट के देवालय, आमूल शिखर तक ढहा दिये
पावनता सहमी, सकुचाई, अनमनी खड़ी है आकुल है
दैवत्व दाँव पर लगा हुआ, चैतन्य चेतना व्याकुल है
तुम सचमुच समय-हंस हो तो
इस नीर-क्षीर को विलगाओ
छोड़ो भी मानसरोवर को
कुछ कृपा इधर भी कर जाओ।
ओ समय-हंस!
कुछ कृपा करो
यह नीर-क्षीर की बेला है।
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल









यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।











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