अब

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की बीसवीं कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।




अब

शहद पाने के
दो ही रास्ते हैं।
या तो
मधुमक्खियों को पालो
या छत्ते को छेड़कर
मधुमक्खियों से
खुद को कटवालो।
तीसरा कोई रास्ता नहीं है
हो तो भी उसका शहद की
मौलिक मिठास से कोई
वास्ता नहीं है।
सच है कि
समझदार और सयाने
मधुमक्खियों को पाल लेते हैं
दुस्साहसी और दुर्दम्य
देश के दायरे में घुसकर
अपनी जान जोखिम में
डाल लेते हैं।
 
अब तुम
या तो मघुमक्खियों को पाल लो
या अपनी जान जोखिम में डाल लो
इसके सिवाय
कोई तीसरा रास्ता हो तो
खुद ही निकाल लो।
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल










यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।











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