गीत हमें गाना ही होंगे

श्री बालकवि बैरागी के दूसरे काव्य संग्रह
‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ की बारहवीं कविता

यह संग्रह पिता श्री द्वारकादासजी बैरागी को समर्पित किया गया है।




गीत हमें गाना ही होंगे

सपन सजाये हैं जब हमने सफल सुखी परिवार के
तो, गीत हमें गाना ही होंगे श्रम के और सहकार के

चल दी नैया हैया ओ हैया, दूर हुई अँधियारी
तूफानों ने हार मान ली तट ने बाँह पसारी
बदल गये हैं जबकि इशारे माँझी और मझधार के
तो गीत हमें गाना ही होंगे श्रम के और सहकार के

सौंधी-सौंधी गन्ध उठी है आज नये पानी से
नई उमंगें झाँक रहीं हैं चुूनरिया धानी से
बासी हो गये गीत, सलौने, साँवरिया, सिनगार के
गीत हमें गाना ही होंगे श्रम के और सहकार के

नव ऊषा ने घूँघट खोला फैली नव अरुणाई
आँख मसल कर देखो साथी मंजिल की तरुणाई
क्या चितवन है, क्या नखरे हैं, इस कामान्ध कछार के
गीत हमें गाना ही होंगे श्रम के और सहकार के

बिना बिंधे काँटों में कल तक जो अलि रस पीते थे
जोर जुलुम कर कलिकाओं पर जो जीवन जीते थे
स्वर, सरगम सब बदल गये हैं उनकी भी गुँजार के
गीत हमें गाना ही होंगे श्रम के और सहकार के

ब्रह्म मुहरत का हर सपना अब सच होने आया
लेकिन सपनों ने भी अपना भुजबल है अजमाया
बहुत बड़ी ताकत होती है बाजू में लाचार के
गीत हमें गाना ही होंगे श्रम के और सहकार के

अपने बेली अब हम हीं हैं हम सबके रखवाले
नहीं अकेला कोई हम में चाहे जो अजमाले
सिर आँखों पर लिये निमन्त्रण प्रलयंकारी ज्वार के
गीत सुनाते जायेंगे हम श्रम के और सहकार के

एक देव के सभी पुजारी, एक जननि के जाये
एक राह के सब ही राही, एक ही बोझ उठाये
साथ निबाहेंगे आँगन तक मरघट और मजार के
गीत सुनाते जायेंगे हम श्रम के और सहकार के

पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्खिन, मंजिल ही मंजिल है
चाहे जिधर घुमा दो नैया साहिल ही साहिल है
बिना डरे बढ़ चलो खिवैया, सीने पर मझधार के
हिल-मिल गीत सुनाते जाओ श्रम के और सहकार के
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जूझ रहा है हिन्दुस्तान
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मालव लोक साहित्य परिषद्, उज्जैन (म. प्र.)
प्रथम संस्करण 1963.  2100 प्रतियाँ
मूल्य - दो रुपये
आवरण - मोहन झाला, उज्जैन (म. प्र.)
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यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।




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