कौन से समन्दर मैं कूदूँ

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘मन ही मन’ की सत्रहवीं कविता

यह संग्रह नवगीत के पाणिनी श्री वीरेन्द्र मिश्र को समर्पित किया गया है।





कौन से समन्दर मैं कूदूँ

आज कायल का पहला सुर
कान में पड़ा
तो
घुल गया मन का
सारा कलुष
बसन्त में भी तन गया
एक मनोहारी इन्द्रधनुष।
सतवन्ती सूरजमुखी
गद्दर गेंदा हजारी
बौरायी अमिया
और सदा सुहागन
कलियों की चिर कुमारी
फुलवारी।
सबने मिल कर छीन लिया
मन बैरागी से
उसका बैराग
अब
कौन-से समन्दर में कूदूँ
जो बुझ जाये
यह आग!
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संग्रह के ब्यौरे
मन ही मन (कविता संग्रह)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - पड़ाव प्रकाशन 
46-एल.आय.जी. नेहरू नगर, भोपाल-462003
संस्करण - नवम्बर 1997
मूल्य - 40 रुपये
आवरण - कमरूद्दीन बरतर
अक्षर रचना - लखनसिंह, भोपाल
मुद्रक - मल्टी ग्राफिक्स, भोपाल








यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। 
‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। 
रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।












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