मौसम बदली ग्यो

श्री बालकवि बैरागी के मालवी श्रम-गीत संग्रह
‘अई जावो मैदान में’ की पन्द्रहवीं कविता


यह संग्रह डॉ. श्री चिन्तामणिजी उपाध्याय को समर्पित किया गया है।



मौसम बदली ग्यो

आँबा की झमकारी ऊपर कारी कोयल यूँ गावे
अपणो बेलीे आप बणे ऊ जुग-जुग पूजावे
के मौसम बदली ग्यो
हाँ रे मौसम बदलीग्यो के
करणो वे ऊ करलो वीरा
मौसम बदलीग्यो

पापी पतझड़ आयो थाँ की जुही चमेली चूँटीग्यो
पण थाँ से सेजड़ल्याँ न्ही छुटी और ऊ लूटीग्यो
के मौसम बदलीग्यो

लाखाँ वीर जुझारा जूझ्या जद यो फागण आयो रे
थाँ से तो बस नवो पसीनों अण ने चायो रे
के मौसम बदलीग्यो

अतरी नद्याँ अतरा नारा आगणियाँ में वे वे रे
फेर काँ अपणी धरती माता तरसी रे वे रे
के मौसम बदलीग्यो

स्वर्ग वणई ने कूण जगत में कण के भेंट चढ़ावे है
मरदाँ अपणी-अपणी मेहनत काऽमें आवे है
के मौसम बदलीग्यो

थाँ की मेहनत थाँ की हिम्मत आज देस ने माँगी है
पास-पड़ौसी सबकी नजराँ थाँ पर लागी हे
के मौसम बदलीग्यो

(ई) पिचपन छप्पन क्रोड़ पूत जद एक जीव वेई जावेगा
(तो) बोलो यो फागणियो पाछो कसरूँ जावेगा
के मौसम बदलीग्यो

आवो अरब-खरब हाथाँ ती जामण को सिणगार करो
अरब-खरब आँगरियाँ अणकी सूनी माँग भरो
के मौसम बदलीग्यो
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संग्रह के ब्यौरे
अई जावो मैदान में (मालवी कविता संग्रह) 
कवि - बालकवि बेरागी
प्रकाशक - कालिदास निगम, कालिदास प्रकाशन, 
निगम-निकुंज, 38/1, यन्त्र महल मार्ग, उज्जन (म. प्र.) 45600
प्रथम संस्करण - पूर्णिमा, 986
मूल्य रू 15/- ( पन्द्रह रुपया)
आवरण - डॉ. विष्णु भटनागर
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मुद्रक - राजेश प्रिन्टर्स, 4, हाउसिंग शॉप, शास्त्री नगर, उज्जैन




यह संग्रह हम सबकी ‘रूना’ ने उपलब्ध कराया है। ‘रूना’ याने रौनक बैरागी। दादा श्री बालकवि बैरागी की पोती। रूना, राजस्थान राज्य प्रशासनिक सेवा की सदस्य है और यह कविता प्रकाशन के दिन उदयपुर में अतिरिक्त आबकारी आयुक्त के पद पर पदस्थ है।











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