सिपाहियों का गीत


 



श्री बालकवि बैरागी के गीत संग्रह
‘ललकार’ का बीसवाँ/अन्तिम गीत




दादा का यह गीत संग्रह ‘ललकार’, ‘सुबोध पाकेट बुक्स’ से पाकेट-बुक स्वरूप में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह की पूरी प्रति उपलब्ध नहीं हो पाई। इसीलिए इसके प्रकाशन का वर्ष मालूम नहीं हो पाया। इस संग्रह में कुल 28 गीत संग्रहित हैं। इनमें से ‘अमर जवाहर’ शीर्षक गीत के पन्ने उपलब्ध नहीं हैं। शेष 27 में से 18 गीत, दादा के अन्य संग्रह ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ में संग्रहित हैं। चूँकि, ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’ इस ब्लॉग पर प्रकाशित हो चुका है इसलिए दोहराव से बचने के लिए ये 18 गीत यहाँ देने के स्थान पर इनकी लिंक उपलब्ध कराई जा रही है। वांछित गीत की लिंक पर क्लिक कर, वांछित गीत पढ़ा जा सकता है।  
  

सिपाहियों का गीत
   
रण जुझारे जा रहे हैं
आज हम सब लाम पर हैं
बाँकुरे संग्राम पर हैं.....

खेत मेरे! लहलहाना धान से भरपूर तुम
वक्त की आई चुनौती लो करो मंजूर तुम
देश भूखा रह न जाये
हम जरूरी काम पर हैं
आज हम सब लाम पर हैं
.....

ऐ मशीनों! धड़धड़ाना, खूब चलना शान से
एक पल रुकना नहीं, डिगना नहीं ईमान से
देश बेबस हो नहीं
हम मौत के मुक्काम पर हैं
आज हम सब लाम पर हैं.....

ऐ बुजुर्गों! पीठ ठोको, आज मचली है जवानी 
फिर नई लिखने चले हैं, हम शहीदों की कहानी
देश के आँसू न निकलें
खून सब नीलाम पर हैं
आज हम सब लाम पर हैं.....

बालकों! लो गीत गाओ, दो बिदा हम चल दिये
क्या पता आएँ न आएँ, अलविदा! हम चल दिये
देश का सर झुक न जाये 
सब तुम्हारे नाम पर है
आज हम सब लाम पर हैं.....
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इस संग्रह के, अन्यत्र प्रकाशित गीतों की लिंक - 

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गीतों का यह संग्रह
दादा श्री बालकवि बैरागी के छोटे बहू-बेटे
नीरजा बैरागी और गोर्की बैरागी
ने उपलब्ध कराया।

 

 

4 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०३-०९-२०२१) को
    'खेत मेरे! लहलहाना धान से भरपूर तुम'(चर्चा अंक- ४१७७)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. आज की चर्चा के लिए मेरी ब्लॉग पोस्ट से शीर्षक लेकर आपने मेरे ब्लॉग को जो मान दिया है उसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ।

      मेरे साथ कठिनाई यह है कि 2007 से ब्लॉग पर बने रहने के बाद भी, तकनीकी-ज्ञान के मामले में मैं अब भी शून्यवत ही हूँ। मैं चाहकर भी अन्य ब्लॉग नहीं पढ़ पाता। पहले ब्लॉगवाणी के जरिये ढेरों ब्लॉग पढ़ने को मिल जाते थे।

      ‘चर्चा मंच’ पर जब-जब भी आ पाता हूँ, तब-तब हर बार आप सबकी मेहनत देखकर चकित रह जाता हूँ। कितनी मेहनत कर रहे हैं आप सब! आज, जबकि फेस बुक ने ब्लॉग को लील लिया है, आप सब महानुभाव ब्लॉग की बाहें थामे उसे मजबूती से खड़ा रखे हुए हैं।

      मैं आप सबको सादर प्रणाम करता हूँ।

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  2. वाह!!!
    बेहद खूबसूरत रचना।

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    1. बहुत-बहुत धन्‍यवाद। आपकी टिप्‍पणी ने यह काम करते रहने के लिए हौसला बढाया।

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आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.