ओ किरणों! कंचन बरसाओ

 
  


श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की बारहवीं कविता 

यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।




ओ किरणों! कंचन बरसाओ

ओ किरणों! कंचन बरसाओ
हर आँगन का अँधियार हरो
मंगल अभिषेक करो
धरा पर सुबरन चरण धरो

रुनक-झुनक झुन-झुन-झुन आओ
अँधियारा सारा पी जाओ
कनक कलश के साथ पिया की
डोली से उतरो
धरा पर सुबरन चरण धरो। ओ किरणों!

नील गगन के लाखों तारे
कब तक लड़ते रहें बिचारे
शीलवती! इनसे भी कुछ तो
शुचि सहयोग करो
धरा पर सुबरन चरण धरो। ओ किरणों!

उजियारा यदि परवश होगा
बोलो किसका अपयश होगा
कोख नहीं हो जाय कलंकित
अपनी गोद भरो
धरा पर सुबरन चरण धरो। ओ किरणों!
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‘ओ अमलतास’ की ग्यारहवीं कविता ‘ ओ अमलतास!’ यहाँ पढ़िए

‘ओ अमलतास’ की तेरहवीं कविता ‘लहद से मैयत मेरी’ यहाँ पढ़िए 




संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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