चेतावनी चेतना को



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की चौथी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।




चेतावनी: चेतना को

कोई नहीं तोड़ता चुप्पी
कोई नही करता हल्ला
कहाँ गई सारी चेतना?
क्या हो गया है इन दिशाओं को?
इतना वरेण्य है सन्नाटों का साम्राज्य?

ओह! नहीं
मैं ही हूँ गलती पर।
घर-आँंगन, फूल-फुलवारी
बाग-बगिया हो तो
चहके कोई पंछी
बोले, मुँह खोले कोई कोयल
और गाए कोई जैजैवन्ती
पर जलती हुई चिता के आस-पास
धधकते इमशान में
चुप रहना और चुप रखना ही
शालीनता का संस्कार है
तो तू भी चुप हो जा मेरी चेतना
तेरा हर चोंचला यहाँ बेकार है।

इतनी-सी बात सुनी
मेरी माँ ने
तो बोली-
‘बेटा!
अगर तेरी स्याही इतनी लाचार है
तो फिर मेरे दूध को धिक्कार है।’
-----
  


संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (15-09-2021) को चर्चा मंच       "राजभाषा के 72 साल : आज भी वही सवाल ?"   (चर्चा अंक-4188)  पर भी होगी!--सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार करचर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।--
    हिन्दी दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

    ReplyDelete
  2. वाह!गज़ब सर।
    बहुत बहुत शुक्रिया इतनी सुंदर रचनाएँ पढ़वाने हेतु।
    सादर नमस्कार

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्‍यवाद। आपकी टिप्‍पणी ने हौसला बँधाया कि मैं इस काम को जारी रखूँ।

      Delete
  3. बहुत सुंदर कविताएं।
    सभी उत्कृष्ट।

    ReplyDelete
    Replies
    1. उत्‍साह बढाने के लिए बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

      Delete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.