मन्दिर जिसे समझ रहे है




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की बीसवीं कविता 

यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।








मन्दिर जिसे समझ रहे हैं

मन्दिर जिसे समझ रहे हैं आप प्यार का
मलबा है भाई सा’ब! वो मेरी दीवार का

मीना बाजार के भरोसे आ तो गये आप
भीतर नजारा देखिये मछली बजार का

पूजा की थालियों को अभी फेंकिये नहीं
वे खौफ खा रहे हैं उसी अन्धकार का

अन्धे के हाथ लग गई जो कोई बटेर
वो मानने लगे हैं खुद को तीसमारखाँ

डायल बदल के कह दिया अब ठीक है घड़ी
बस नाम भी बदल दो अब शुक्रवार का

अवतार ही अवतार हैं मलबे के पासबाँ
ये भी करिश्मा है मेरे परवरदिगार का
-----


‘ओ अमलतास’ की उन्नीसवीं कविता ‘त्यौहार की सुबह’ यहाँ पढ़िए

‘ओ अमलतास’ की इक्कीसवीं कविता ‘आप बस गुमनाम’ यहाँ पढ़िए 

 


संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
-----









 













9 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (17-09-2021) को "लीक पर वे चलें" (चर्चा अंक- 4190) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी। बहुत-बहुत धन्‍यवाद। कल का अंक अवश्‍य देखूँगा।

      Delete
  2. अवतार ही अवतार हैं मलबे के पासबाँ
    ये भी करिश्मा है मेरे परवरदिगार का---बहुत गहरी पंक्तियां...।

    ReplyDelete
    Replies
    1. टिप्‍पणी के लिए बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

      दादा श्री बालकवि बैरागी के बीस से अधिक संग्रह मेरे ब्‍लॉग पर उपलब्‍ध हैं। कोशिश कर रहा हूँ कि उनका लिखा, जितना भी मिल जाए, सब ब्‍लॉग पर पोस्‍ट कर दूँ।

      Delete
  3. वाह!गज़ब का सृजन।
    आपका अनेकानेक आभार हमें श्री बालकवि बैरागी के कविताएँ यों ही पढ़वाते रहें।
    सादर प्रणाम।

    ReplyDelete
    Replies
    1. दादा श्री बालकवि बैरागी के बीस से अधिक संग्रह मेरे ब्‍लॉग पर उपलब्‍ध हैं। कोशिश कर रहा हूँ कि उनका लिखा, जितना भी मिल जाए, सब ब्‍लॉग पर पोस्‍ट कर दूँ।

      Delete

      Delete
  4. तृप्ति दायी प्रस्तुति । मर्मभेदी निहितार्थ ।

    ReplyDelete
  5. मर्मस्पर्शी सृजन।
    सादर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. टिप्‍पणी के लिए बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

      Delete

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.