प्रातः - सन्ध्या



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘रेत के रिश्ते’ 
की उन्नीसवीं कविता 

यह कविता संग्रह
श्री पं. भवानी प्रसादजी मिश्र को 
समर्पित किया गया है।


प्रातः - सन्ध्या

एक सूरज और निकला
दूर दक्षिण के समुद्री छोर से
अर्ध्य इसको दें
पढ़ें गायत्रियाँ
और प्रभु से-
यदि कहीं वह सुन सके तो
प्राथना पावन करें-
हे नियन्ता!
सूर्य यह, सविता प्रखर
स्वर्ण-किरणों से नया आलोक दे
हर क्षितिज पर छाप छोड़े पूर्व की
वह्लि इसकी हो अपूर्वा।

और पश्चिम
सामने इसके कभी आए नहीं
मुक्त पंछी, घाम इसका सह सकें
‘अस्त’ जैसा शब्द
इसकी कुण्डली में
स्थान क्या
उपस्थान तक पाए नहीं ।
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संग्रह के ब्यौरे

रेत के रिश्ते - कविता संग्रह
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - साँची प्रकाशन, बाल विहार, हमीदिया रोड़, भोपाल
प्रथम संस्करण - नवम्बर 1980
मूल्य - बीस रुपये
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल
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