आस्था का आह्वान



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की पन्द्रहवी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।


आस्था का आह्वान

मेरे मित्र!
पाती के पंखों पर
भावना आपकी मिली।
आपके आदर-भाव का
आभारी हूँ।
बहुत अच्छे होते हैं ऐसे भाव
पर विपरीत होता है उनका प्रभाव।

‘व्यक्ति’ और ‘संस्था’ का फर्क
जब नहीं हो पाता स्पष्ट
तब ही होता है आप-जैसों को
आत्मीय कष्ट!
यह सच है कि बिना इकाई के दहाई नहीं बनती
पर यह भी सच है कि
संख्या में विसर्जित अंक की
कोई अलग-थलग रहनुमाई नहीं होती।

अंक की तरह जुड़ो
बनकर देखो तो सही एक संख्या।
तुम व्यक्ति के लिये जी रहे हो
में संस्था के लिये मर रहा हूँ
तुम-जैसे द्वीपों को
मुख्य भूमि से जोड़ने का
अपना संस्कारगत संघर्ष कर रहा हूँ।

हो सके तो मुझे मान लो अपना सेतु
लेकर जयकेतु
मेरी छाती पर पाँव देकर आगे बढ़ जाओ
मैं निबाहूँगा अपनी अविचलित भूमिका,
अपनी धरती के दुश्मनों से
तुम एक मर्द की तरह
लड़ जाओ।
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संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















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