प्रार्थना: एक शोक गीत के लिए



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की पाँचवी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।


प्रार्थना: एक शोक-गीत के लिये

जब मैं गाता हुआ उधर से गुजरा
तो दौड़कर बन्द कर दिया
मेरा मुँह चन्द सयानों ने
खींच कर बैठा लिया
अपने पास
और कहा
‘अब तुम भी खींचो एक लम्बी निसाँस
देखते नहीं, तुम एक मरघट में हो?’

और मैंने कहा
‘क्या मैं एक मर्सिया
एक शोक-गीत गा सकता हूँ?’
तो वे फिर बोले
‘यहाँ रोते को भी चुपाना
और गाते को भी चुपाना
हमारा काम है
हम सयाने हैं।’

जब मैंने फुसफ़ुसा कर धीरे-से पूछा,
‘आखिर यह कौन मर गया है
यह किसकी चिता है?’
तो क्रोध से करीब-करीब काँपते-से
और मारे भय के करीब-करीब हाँफते-से
वे जोर से चीखे-
‘बन्द करो अपनी बक-बक
हम पर कृपा करो
न रोओ, न गाओ
खामोश, बिलकुल खामोश
हमारी ही तरह चुप हो जाओ।
इसी तरह डरो
यह पूछ-ताछ वगैरह कुछ मत करो
हम पर नहीं तो खुद पर
रहम खाओ।
हमें भी नहीं पता कि कौन मर गया है?
और पता हो तो भी
हम नहीं बतायेंगे।
तुमने ज्यादा चीं-चपड़ की
तो तुम्हारे सवालों के साथ-साथ
तुमको भी कच्चा चबा जायेंगे।
देखते नहीं
तुम एक मरघट में हो
और हम सयाने हैं।

अभी शव को चिता ने छुआ भर है
शेष है कपाल-क्रिया
बाकी है शोक-स्नान
शुरु ही हुई है रामधुन
यह सारा संस्कार पूरा करके
तुम अपने घर जाना
और फिर
तुम खुद ही इत्मीनान से
मरनेवाले का पता लगाना।’

फिर, उन्होंने मेरी पीठ सहलाई
मुझे पुचकारा
और उपदेश देते हुए कहा-
‘नहीं बेटे! नहीं,
अच्छे बच्चे बात मान लेते हैं
सयानों से सवाल नहीं करते।
सयाने जो कुछ कहते हैं
दूर की सोच कर कहते हैं।
देखते नहीं, तुम एक मरघट में हो
और हम सयाने हैं।’

और
जब मैं अपने घर पहुँचा तो
पाया कि चुप्पी जरूर है
पर शोक नहीं,
जीवन की दिनचर्या पर कोई रोक नहीं।
रोना सब चाहते थे,
पर रोते नहीं थे
आँसू सब की आँखों में थे,
फिर भी मेरे साथ
गाना सभी चाहते थे
पर गाते नहीं थे।
और जब मैंने उनसे भी
वही सवाल किया
कि ‘आखिर कौन मर गया है?’
तो वे मेरे ओठों पर
हाथ रखते हुए बोले
‘भगवान के लिये चुप रहो
हमें भी नहीं पता कि कौन मर गया है।’

और
अब मैं प्रार्थनारत हूँ कि
हे ईश्वर!
मुझे इतनी शक्ति दे कि
मैं मरनेवाले का पता लगा कर
सारी दुनिया को बता सकूँ
उसकी तस्वीर पर एक फूल चढ़ा कर
उसकी समाधि पर
कम-से-कम एक शोक-गीत
पूरी आजादी के साथ गा सकूँ।
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संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















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