पूछिये मत




श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की अठारहवीं कविता 

यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।




पूछिये मत

पूछिये मत क्या वहाँ कर पायेंगे
घाटियों में घूम कर आ जायेंगे

आपके उन्माद की ईश्वर रखे
जिन्दगी भर हम उसे भुनवायेंगे

ख्वाब जो गिरवी रखेंगे आज तो
देख लेना उम्र भर पछतायेंगे

हो मुबारक आपको अपनी जमीं
हम दरख्तों पर खड़े हो जायेंगे

मामला कसम-ए-वफा का छोड़िये
पेट से लाचार हैं, खा जायेंगे

इम्तिहाँ लेने की जिद है, लीजिये
कापियाँ आखिर कहाँ जँचवायेंगें
----


‘ओ अमलतास’ की सत्रहवीं कविता ‘चुप रहो’ यहाँ पढ़िए

‘ओ अमलतास’ की उन्नीसवीं कविता ‘त्यौहार की सुबह’ यहाँ पढ़िए 

 


संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
-----























  


No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.