लिलहारे गोद दे रे लाल तिकोना


श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
दो टूक’ की सैंतीसवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



लिलहारे गोद दे रे लाल तिकोना
(परिवार नियोजन पर, लोक-धुन और लोक शैली पर आधारित एक और गीत।)

लाल तिकोना
देखे मेरा सलौना
लिलहारे गोद दे रे लाल तिकोना!

                    -1-

पहिला फूल बाग में खिला तो मैं खिली
दूसरा खिला तो मुझे गुदगुदी चली
चूम भी न पाई मैं तो इनकी पँखुरियाँ
कसमसाने लग गई है तीसरी कली

इस फागन के खातिर कर दे
लौनी-लौनी बहियाँ पे लाल बिछौना
लिलहारे गोद दे रे लाल तिकोना!

                    -2-

पाँच देव, चार धाम गोदना नहीं
चाँद-सूरज, राम-श्याम गोदना नहीं
फूल या त्रिशूल नहीं कोई चकोरी
हाँ, हाँ मेरे ‘उनका’ नाम गोदना नहीं

तीन लकीरों के तार मिला कर
बीच में उँडेल दे सिंदूर का दौना
लिलहारे गोद दे रे लाल तिकोना!

                    -3-
 
कर रहा है हाय! क्यों तू इतना अचम्भा
कह रहा है लाल किला, कह रही गंगा
खेत कुएँ और ये खलिहान कह रहे
कह रहा है आज मुझसे मेरा तिरंगा

मोल लगा मत, देर लगा मत 
आज तो लगा दे रे लाल डिठौना
लिलहारे गोद दे रे लाल तिकोना!
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।























 


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