बड़ा मजा है





श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की पन्द्रहवीं कविता 

यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।




बडा मजा है

इस तट से उस तट को देखो, बड़ा मजा है
नये-नये घूँघट को देखो, बड़ा मजा है

पीढ़ी की पीढ़ी निपटा दी जिसने अपनी एक लहर से
उस कजरारी लट को देखो, बड़ा मजा है

एक बूँद पानी दिखलाकर भीड़ जुटा ले जो लाखों की
उस प्यासे पनघट को देखो, बड़ा मजा है

थिरक-थिरक तक जिस चादर पर रम्भाओं ने रास किया
उस चादर की सलवट को देखो, बड़ा मजा है

करना था सो कर ही डाला, होना है सो हो जायेगा
पर यारों की खटपट को देखो, बड़ा मजा है

भाँवर से उठते ही सीधे, अभी-अभी जो आया घर में 
उस जोड़े की खटपट को देखो, बड़ा मजा है
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‘ओ अमलतास’ की चौदहवीं कविता ‘मुरझा गये कमल’ यहाँ पढ़िए

‘ओ अमलतास’ की सोलहवीं कविता ‘इन्कलाब है’ यहाँ पढ़िए 

 


संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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