गोवा की स्मृतियाँ

 

श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘दो टूक’ की इकतीसवीं कविता 

यह संग्रह दा’ साहब श्री माणक भाई अग्रवाल को समर्पित किया गया है।



गोवा की स्मृतियाँ

गोआनी मुछआरों की रोमानी जिन्दगी।
सागर की लहरों पर मनमानी जिन्दगी।।
हिचकिचा के फँसती हुई मछली किसी जाल में।
बहुत याद आएगी मुझको भोपाल में।।

तुलसी के चौरे के आस-पास क्रॉस ये।
लोहे पर मिट्टी का बढ़ता विश्वास ये।।
नारियल को देख रहीं अपलक सुपारियाँ।
जाने क्या लिख गई रेत पर कुमारियाँ।।
ताल नहीं, गढ़ा है ये गुईयाँ के गाल में।
हाय राम! भूलूँगा कैसे भोपाल में।।
  
मछली और सोम की गन्ध है बाजार में।
फेरी का प्रणय-पत्र उत्तरित है कार में।।
काजू के छिलकों पर ओठों की छाप है।
पाँच मिनट बारिश और पाँच मिनट साफ है।।
गिरजा भी गुम है, मन्दिर के ख्याल में।
तरस-तरस जाऊँगा, इसको भोपाल में।।

सूरज की सोनाली, चाँद की रुपालियाँ।
माँज रहीं साँझ-सुबह घर-घर में थालियाँ।।
ब्याह दी है बेटियाँ, सह्याद्रि को वरुणेश ने।
हरियाली जुए में हारी मंगेश ने।।
पगलाई प्रकृति यहाँ, सोलहवें ही साल में।
प्राण मेरा लेगी हाय राम! जाकर भोपाल में।।

नयन-नयन सपन और शुचिता की छाँव है।
धानों की मेड़ों पर, सपनों का गाँव है।।
कटहल के तने टिके, किसको अवकाश है।
सूरज की अँजुलि से छहरता प्रकाश है।।
पछुवा बेहाल हुई आखिर उस पाल में।
कैसे छुपाऊँगा, यह सब भोपाल में।।
   
घाटियों में गुम है जो, शायद वे गीत हैं।
हाँ, हाँ, वो कोकणी का छन्द मेरा मीत है।।
अपनी प्यास प्रेयसी की खोज में अधीर है।
मेरे गाल पर भी इसने खींच दी लकीर है।।
कण्ठ में रखूँ या इसे, बाँध लूँ रूमाल में।
चूमूँगा जाकर के इसको भोपाल में।।
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संग्रह के ब्यौरे
दो टूक (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज, कश्मीरी गेट, दिल्ली।
पहला संस्करण 1971
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - छः रुपये
मुद्रक - रूपाभ प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली।
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यह संग्रह हम सबकी रूना ने उपलब्ध कराया है। रूना याने रौनक बैरागी। दादा स्व. श्री बालकवि बैरागी की पोती। राजस्थान प्रशासकीय सेवा की सदस्य रूना, यह कविता यहाँ प्रकाशित होने के दिनांक को उदयपुर में, सहायक आबकारी आयुक्त के पद पर कार्यरत है।























 


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