फूल तुम्हारे, पात तुम्हारे

 
  


श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की सातवीं कविता 

यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।




फूल तुम्हारे, पात तुम्हारे

कितने मोहक, कितने मादक
प्राण पुरुष! उत्पात तुम्हारे
फूल तुम्हारे, पात तुम्हारे

पल में पीली, पल में नीली
जीवन शाख बड़ी लचकीली
क्या-क्या रंग दिखा देते हैं
सतरंगे आघात तुम्हारे
फूल तुम्हारे पात तुम्हारे

बीज उगा, आँसू अँकुराया
जड़ को तुमने जीव बनाया
माटी का वृन्दावन रचकर
क्या आया है हाथ तुम्हारे
फूल तुम्हारे पात तुम्हा
रे

सक्षम हो सब कर सकते हो
गहरे और उतर सकते हो
मुझ घायल के सिवा वहाँ तक
कौन चलेगा साथ तुम्हारे
फूल तुम्हारे पात तुम्हारे
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‘ओ अमलतास’ की छठवीं कविता ‘क्यों तुमने यह बिरवा सींचा’ यहाँ पढ़िए

‘ओ अमलतास’ की आठवीं कविता ‘सेनापति के नाम’ यहाँ पढ़िए 




संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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