प्रदर्शन (‘मनुहार भाभी’ की दूसरी कहानी)



श्री बालकवि बैरागी के
प्रथम कहानी संग्रह
‘मनुहार भाभी’ की दूसरी कहानी





प्रदर्शन

सत्तारूढ़ दल का हर विधायक अपने-अपने इलाके में प्रदर्शन की तैयारियों के लिए गाँव-गाँव की धूल फाँक रहा था पर कदाचित् स्वामी थे कि बराबर राजधानी में ही डटे रहे। एक दिन के लिए भी वे क्षेत्र में नहीं गए। जब भी कभी कोई विधायक समय निकालकर राजधानी आता और चाय-वाय की बैठक के साथ कदाचित् स्वामी से प्रदर्शन की तैयारियों का हालचाल जानना चाहता तो वे बहुत ही सन्तुलित अन्दाज में कहते, ‘एक ही क्षेत्र से चार-चार बार चुनाव जीतकर आ जाना कोई आसान काम नहीं है। जनता की नब्ज पर हमारी पकड़ है और हमारे एक ही हल्ले पर हजारों आदमी नंगे पाँव दौड़कर राजधानी में आ जाएँगे। आ क्या जाएँगे बराबर आते रहे हैं। हमारी सारी तैयारियाँ बहुत तेजी से चल रही हैं। और फिर हम कह चुके हैं कि चाहे हमारा जिला राजधानी से बहुत दूर है और फिर हमारा अपना विधान सभा क्षेत्र भी एकदम प्रदेश की धुर सीमा पर बिल्कुल एकाकी है और ठेठ देहाती है तब भी हमारे यहाँ से एक हजार से ज्यादा ही प्रदर्शनकारी इस प्रदर्शन में आएँगे। प्रदेश का संगठन और मुख्य मन्त्री जी चाहे तो हमारे लोगों की मुण्डियाँ गिनवा लें।’

तैयारी में लगे और थके-हारे नए और अधकचरे विधायक कदाचित् स्वामी की यह बात सुनकर सनाका खा जाते। वे देखते थे कि यह सब कहते समय कदाचित् स्वामी के चेहरे पर तिल भर तनाव नहीं है। कई बार तो इस कथन के साथ उनके चेहरे पर अतिरिक्त उल्लास और भी झलक पड़ता था। इतना ही नहीं कदाचित् स्वामी इस सनाके को ज्यादा गहराई यह कहकर भी देते थे कि ‘इन सभी एक या सवा हजार कर्यकर्ताओं के  आने-जाने, खाने-पीने, ठहरने और यहाँ राजधानी में भ्रमण आदि की व्यवस्था भी वे खुद करेंगे। इसके लिए वे संगठन पर कोई बोझ नहीं डालेंगे। और फिर अभी तो प्रदर्शन में पूरे दो हफ्ते बाकी हैं! घबड़ाने और हाय-हल्ला करने की कौन-सी बात हो गई? आखिर हम लोग रूलिंग पार्टी के विधायक हैं। सरकार का समर्थन करने वाली रैली का कामकाज देख रहे हैं। प्रदर्शन होगा और डटकर होगा। राजधानी की सड़कें जनता-जनार्दन से पट जाएँगी। प्रतिपक्ष देखेगा कि हमारा संगठन और हमारे मुख्य मन्त्री का जनाधार कितना विशाल और कितना मजबूत है। आप तो अपने-अपने क्षेत्र की चिन्ता कीजिए। हमारे लिए यह कोई नया काम नहीं है। हमारा तो क्षेत्र ही इतना दूर है। अगर कहीं आप लोगों की तरह हम भी यहीं कहीं आस-ही-पास के होते तो हम बताते कि भीड़ किसे कहते हैं और संगठन पर पकड़ का मतलब क्या होता है। चलिए, आप चाय लीजिए। बेचारे नए-पुराने विधायक इस उल्लास, इस उत्तेजना और इस उमंग से इतने आतंकित हो जाते कि उनकी चाय का स्वाद चला जाता। एकाध पूछने का साहस करता भी तो बस इतना ही पूछता, ‘गुरु! भीड़ जुटाने का यह महामन्त्र हमको भी सिखा दो। आपके गुण गाएँगे। हम तो इलाके के लोगों की चौखटों पर सिर मार-मार कर तबाह हुए जा रहे हैं और एक आप हैं कि यहाँ बैठे ही बैठे सारी तैयारियाँ धूमधाम से चलने का हल्ला कर रहे हैं।’

कदाचित् स्वामी एक रहस्यमयी मुस्कान और फिर अपने टेलीफोन की ओर प्यार-भरी नजर से देखते, उसे सहलाते, उसकी डोरी को इधर-उधर उँगलियों पर लपेटते। हालाँकि मन-ही-मन उनकी इस बात की झल्लाहट भी छूटती थी कि वे इतने सीनियर विधायक हैं और आधा घण्टा हो गया इन जूनियर विधायकों को यहाँ बैठे गपियाते, पर एक बार भी इस कमबख्त की घण्टी नहीं बजी। पर इस मनोभाव को वे चतुराई से चबा जाते। फिर वे खुद ही चोंगा उठाते और अनजान बने से किसी विधायक से पूछते, ‘वो मुख्य मन्त्री जी के सचिवालय का नम्बर क्या है? जरा उनसे बात कर लें। प्रदर्शन की तैयारियों में अपने लायक कोई विशेष कामकाज हो तो पूछ लें। बेचारे विधायक असहाय से एक-दूसरे का मुँह देखते। पर नए विधायकों के पास ऐसे नम्बरों की जेबी डायरी मौजूद रहती है। कदाचित् स्वामी इस मनोविज्ञान से खूब परिचित थे इसलिए एक-न-एक विधायक उनको नम्बर दे ही देता। उनकी उँगलियाँ तब टेलीफोन के डायल पर चलने लग जातीं और हमेशा के मुताबिक मुख्य मन्त्री जी के सचिवालय का नम्बर एंगेज्ड ही मिलता। कदाचित् स्वामी यहाँ भी नहीं चूकते। वे कहते, ‘गनीमत है कि नम्बर एंगेज्ड मिला। अगर नम्बर मिल भी जाता तो मुख्य मन्त्रीजी बाथरूम में ही मिलते।’ और सारा कमरा तनावमुक्त हो जाता। पर आज शायद कुछ और ही गुन्ताड़ा वे मन-ही-मन भिड़ा रहे थे, सो ऐसा नहीं करके कमरे में बैठे मित्रों की तैयारियों का जायजा लेने लगे।

और सचमुच ही कदाचित् स्वामी इस प्रदर्शन की तैयारियों के मामले को लेकर कहीं भी नहीं भागे। न यहाँ गए न वहाँ। अपने कमरे में ही बैठे-बैठे उन्होंने सब कुछ कर लिया। हाँ, अपने टेलीफोन का इतना उपयोग उन्होंने जरूर किया कि अपने घर फोन करके यह संवाद छोड़ दिया कि कहीं कोई भी पूछताछ करे तो यही जवाब दिया जाए कि कदाचित् स्वामी प्रदर्शन की तैयारियों के सिलसिले में अपने चुनाव-क्षेत्र के देहातों में जन-सम्पर्क पर गए हुए हैं। जवाब यही होना चाहिए और यही होना बहुत आवश्यक भी है।

चूँकि वे चौथी बार चुने गए थे इसलिए सचिवालय और सरकार में उनकी जड़ें गहरी थीं। किसी भी तैयारी के लिए उनको कमरे से बाहर जाने की जरूरत वैसे भी नहीं थी। सरकारी कामकाज लेकर उनके पास तबादले वाले, तरक्की वाले, नियुक्तियों वाले लोग तो आते ही थे, लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग, हैण्ड पम्प विभाग, चिकित्सा विभाग जैसे दुधारु विभागों के ठेकेदार लोग भी आते रहते थे। वे प्रदर्शन रैली में लगने वाले सामान की तैयारियों की फेहरिस्त बनाकर आराम से अपने सोफे पर लेटे या बैठे रहते और जो भी उनसे किसी काम विशेष से मिलने के लिए आता उसके सामने फेहरिस्त खोलकर फैला देते। फेहरिस्त कोई विशेष लम्बी-चौड़ी नहीं थी। पार्टी के बीस झण्डे जिन पर दल का चुनाव-चिह्न छपा हुआ हो, पचास-साठ बैनर्स आठ फुट बाय दो फुट के-दोनों तरफ बाँस फँसाने के लिए जगह बनाकर सिले हुए, दस बैनर्स पाँच बाय तीन फुट के जो कि क्षेत्र से आने वाली बसों पर लगाए जाएँगे। एक सौ साठ मझले साइज के बाँस जो कि बैनरों और झण्डों में लगाए जाने के काम आते हैं। दो किलो सन की सुतली। एक जेबी कैंची और बैनरों पर अपनी पार्टी का नाम, पार्टी का चुनाव चिह्न, कदाचित् स्वामी के चुनाव क्षेत्र का नाम, जिले का नाम फिर उनका खुद का नाम और एकाध नारा संघर्ष का और मुख्य मन्त्रीजी की जय-जयकार का एक स्लोगन, यह सब लिखना-लिखवाना। उसके लिए पेण्टर का खर्चा और रंग-रोगन का खर्चा तथा तीन-चार छोटी-बड़ी कूँचियाँ जिनसे कि यह सब लिखाया जा सके। ज्ञान उनका बहुत ही व्यावहारिक था। वे जेब के मुताबिक बिल और गाल के मुताबिक थप्पड़ जड़ना खूब जानते थे। कौन आदमी कैसा काम लेकर आया है वे उसी से उसके जेब का अनुमान लगा लेते थे और उस फेहरिस्त में से जो जितना कर सकता था उतना राजी-खुशी करने के लिए कह देते थे। किसी पर विशेष वजन भी नहीं और किसी हो-हल्ला भी नहीं।

अपने फ्लेट के एक कमरे में यह सारा सामान रखने का निर्देश वे अपने परिचारक को दे चुके थे। जैसे-जैसे लोग झण्डे, बैनर्स और चीज-वस्तु बनाकर या बनवाकर लाते वैसे-वैसे उन्हें एक कोने में रख दिया जाता था। प्रदर्शन की उनकी तैयारियाँ बहुत सलीके से चल रही थीं। चाहते वे यह थे कि उस पूरे दिन के लिए उन्हें एक फोटोग्राफर मिल जाए जो कि प्रदर्शन की उनकी सारी गतिविधियों के फोटो खींचने का काम अंजाम दे सके। इस काम के लिए उनको परफेक्ट आदमी की तलाश थी। उसमें क्षण को पकड़ने और समझने की बुद्धि होनी चाहिए वर्ना सारा किया-कराया गुड़ गोबर हो सकता है। वे जानते थे कि यह प्रदर्शन उनके अगले चुनाव के टिकट के लिए एक पूरा अलबम तैयार करने का मौका है। आगे काम आएगा।

जैसा कि होता आया है प्रतिपक्ष की ओर से आए दिन इस प्रदर्शन की खिल्ली उड़ाने के वक्तव्य अखबारों में आने लगे। हवा में तरह-तरह की बातें उड़ने लगीं। कदाचित् स्वामी कहाँ कच्ची गोलियाँ खेले थे! उन्होंने प्रतिपक्ष के एक वजनदार नेता के वक्तव्यों का सटीक और त्वरित उत्तर देने का जिम्मा खुद-ब-खुद अपने ऊपर ले लिया और अखबारों में शुरु हो गए। रोज की कतरनें रोज वे मुख्य मन्त्री और प्रदेश के अपने अध्यक्ष तथा दिल्ली हाई कमान के महत्त्वपूर्ण लोगों को भेजने में बिल्कुल नहीं चूके । बाजार की फोटोस्टेट मशीनों का उन्होंने जमकर उपयोग किया। जो भी सामने होता उसे ही वे उस दिन की कतरनें थमाकर उसकी चालीस-पचास फोटोस्टेट कापियाँ बनवाने का आग्रह पेश कर देते और उनका आग्रह अधिकाधिक बीस-पच्चीस रुपए खर्च तक का होता। कोई भी उसे मान लेता था। सारा काम बहुत व्यवस्थित और सिलसिले से चलता रहा। 

प्रदर्शन के दिन ज्यों-ज्यों निकट आते राजधानी में गहमागहमी बढ़ने लगी। अपनी पार्टी के प्रादेशिक कार्यालय को कदाचित् स्वामी ने लिखकर सूचना दी कि उनके क्षेत्र से दस बसों में करीब पाँच सौ लोग और उधर से आने वाली रेलों से करीब नौ सौ या हजार कार्यकर्ता इस प्रदर्शन के लिए राजधानी पहुँचें। इस तरह उस दिन इकट्ठी होने वाली भीड़ में सवा या डेढ़ हजार लोगों की भीड़ कदाचित् स्वामी के इलाके की अवश्य रहेगी। इन सभी लोगों के लिए हर तरह की व्यवस्था वे खुद करेंगे। पार्टी पर इनका कोई वजन नहीं पड़ेगा । तब भी यदि पार्टी सभी विधायकों को कुछ सुविधाएँ वगैरह दे रही हो तो उसकी सूचना उन्हें भी दे दी जाए ताकि वे इन सुविधाओं को यथासमय बटोर सकें। हालाँकि इस लिखित पत्र का कोई लिखित उत्तर कदाचित् स्वामी को पार्टी की ओर से नहीं दिया गया किन्तु उन्हें संकेत कर दिया गया कि वे अपनी कमिश्नरी के कमिश्नर से सम्पर्क कर लें। वहाँ यातायात विभाग के आर.टी.ओ. के जिम्मे प्रत्येक विधायक के लिए पाँच बसों की व्यवस्था डीजल-पैट्रोल सहित सरकार ने कर दी हे । वे बता दें कि उनके लिए बसें कहाँ-कहाँ लगा दी जाएँ ताकि लोग ढोए जा सकें। कदाचित् स्वामी इस व्यवस्था से मानो एक तरह से ‘ऊँऽह्’ जैसी मुद्रा में पार्टी के कार्यालय से वापस हुए। आने वाले हैं सवा या डेढ़ हजार लोग और पार्टी और सरकार मिल कर दे रही हैं कुल जमा पाँच बसें! एक बस में ज्यादा से ज्यादा पचास लोग भी ठूँस दो तो कुल लाए गए ढाई सौ लोग!  ऊँट के मुँह में जीरा ही हुआ यह तो! पर तब भी मन-ही-मन वे बहुत प्रसन्त थे। ऊपर से उदास दिखने वाले कदाचित् स्वामी मन- अपने निर्वाचन क्षेत्र के मुख्यालय से राजधानी तक आने-जाने का हर बस का डीजल और तेल-पानी का खर्चा जोड़ रहे थे। प्रति बस कितना रुपया आर.टी.ओ. से वसूला जा सकता है। अपने कमरे पर आते-आते उन्होंने हिसाब लगाया कि यह राशि तीस हजार से चालीस हजार रुपयों के बीच में बैठती है। कमरे में आते ही उन्होंने आर.टी.ओ. साहब को ट्रंक कॉल बुक किया और वे प्रदर्शन की अगली तैयारियों में लग गए। आर.टी.ओ. और कमिश्नर को क्या कहना है, उसका रिहर्सल उन्होंने

दो-एक बार बुदबुदाकर कर लिया। कमिश्नर तो खैर राजधानी आज-कल में ही आने वाले हैं पर मूल बात है आर.टी.ओ. साहब का हाथ आ जाना। प्रदर्शन का गणित हर तरह कदाचित् स्वामी के पक्ष में बैठ रहा था। उनके वक्तव्य धुँआधार आ रहे थे। एक सीनियर विधायक की नोटिस प्रेस भला कैसे नहीं लेता? उनका हर कदम नपा-तुला था और बिल्कुल सही था। 

प्रदर्शन के दिन बड़ी भोर से ही कदाचित् स्वामी नहा-धोकर तैयार होकर फोटोग्राफर को साथ लेकर सबसे बड़ा झण्डा बाँस में फँसाकर अपने क्षेत्र से आने वाली गाड़ी के प्लेटफार्म पर बेसब्री से इन्तजार करते यहाँ-वहाँ भागदौड़ करते देखे गए। फोटोग्राफर को वे खूब समझा चुके थे कि उसे कब क्या करना है। गाड़ी के आते ही नारे लगाते लोग डिब्बे से उतरना शुरु हुए। कदाचित् स्वामी कन्धे पर बडा झण्डा और अपना झोला लटकाए एक डिब्बे से उतरे तरह-तरह की उम्र के लोगों के सामने खड़े हो गए।  और वे दूसरे समूह के सामने जाकर इसी तरह खड़े हो गए। फोटोग्राफर को देखते ही भीड़ का घेरा धक्का-मुक्की और आकाश-फाड़ नारों पर उतर आया। कदाचित् स्वामी ने उस समूह के साथ फोटू खिंचवाया और वे दूसरे समूह के सामने जाकर इसी तरह खड़े हो गए। आठ-दस बोगियों के लोगों के बीच वे इसी तरह नारों और कैमरों के क्लिक करवाते रहे। भीड़ में आखिर स्वर उठने ही थे। लोग कहते पाए गए- ‘देखिए, इसे कहते हैं विधायक! अपने कार्यकर्ताओं का कितना ध्यान रखता है यह आदमी! सबको लेने स्टेशन भी आया और सभी के फोटो तक की व्यवस्था की। इनके क्षेत्र के लोग धन्य हैं कि उन्हें इतना जागरूक विधायक मिला।’ इसी गहमागहमी में कदाचित् स्वामी रेलवे गेट पर जाकर टी.टी. से बहस करते देखे गए - ‘यह प्रदर्शन-स्पेशल है और आप हैं कि हर एक को रोक-रोककर टिकट की-पूछ रहे हैं? निकल जाने दीजिए।’ और खुद खड़े रहकर नारे लगाते लोगों को उन्होंने बाहर निकलने में सहायता की। उस गाड़ी से जुड़े इलाकों वाले दो-एक विधायक और भी पहुँचे और पार्टी के एक महामन्त्री भी आए, पर जयजयकार हो रही थी कदाचित् स्वामी की। सक्रियता उनकी ही सराही जा रही थी। प्रदर्शनकारी अपने-अपने सूत्रों के आसपास अपने-अपने ठहरावों पर जाने लगे। अपना टेम्पो और अपना फोटोग्राफर लेकर कदाचित् स्वामी वापस आवास पर आए। चाय पी, नाश्ता किया। फोटोग्राफर को कुछ और निर्देश दिए और बसों पर लगाए जाने वाले बैनर्स लेकर जेब में कैंची रखे सामने वाली सड़क पर आ गए। 

आसपास से सैकड़ों बसें प्रदर्शनकारियों को ले-लेकर राजधानी में बड़ी सुबह पहुँच चुकी थीं। कार्यकर्ता अपनी प्रातःकालीन चर्या से निपटने में लगे हुए थे। कुछ अपने-अपने विधायकों के कमरों में पसरे पड़े थे। सारी सड़क पर भीड़ की भारी चहल-पहल थी। कदाचित् स्वामी ने एक-आध किलोमीटर का चक्कर लगा-लगाकर सात-आठ सूनी बसों को चुना। उन पर लगे हुए दूसरे विधायकों और क्षेत्रों के नाम के बैनर कैंची से डोरियाँ काटकर, लटकते कर दिए। अपना बैनर बाँधा और बस के साथ फोटो खिंचवा लिया। आसपास जो भी लोग जुट गए उनको फोटो में शामिल कर लिया। कैमरामैन को देखकर हर बस के पास बड़ी भोर भी दस-बीस लोग तो आ ही गए। 

दोपहर एक बजे से प्रदर्शन शुरु होना था। भीड़ दस बजे से ही मैदान पर जुटनी शुरु हो चुकी थी। कदाचित् स्वामी ने बिल्कुल योजनाबद्ध तरीके से पैंतरा लिया। एक टेंपो में जुलूस वाले बड़े बैनर्स और बाँस का गट्ठर रखा। झण्डे रखे। दूसरे में फोटोग्राफर के साथ खुद बैठे और चल दिए मैदान की ओर। जहाँ नारे कम लाउड स्पीकर का रेकार्ड ज्यादा हल्ला कर रहा था। एक मुकाम पर कदाचित् स्वामी ने बाँस उतारे। बैनर्स उतारे और बैनरों में बाँस फँसा-फैंसा कर उनको उठाने लायक बना दिया। प्रदेश का पार्टी समूह प्रदर्शन के जुलूस को कतारों में खड़ा कर रहा था। यही समय था जबकि कदाचित् स्वामी अपने बैनर्स और पार्टी के झण्डों को सही हाथों में थमा देते। उन्होंने यह काम बहुत गम्भीरता और शालीनता से किया। वे पहले एक पढ़े-लिखे जैसे आदमी को पार्टी का झण्डा धमाते और फिर आसपास खड़ी भीड़ में दो-चार लोग वैसे परख लेते जिनको कि बैनर थमाए जा सके। फिर नारा लगाते। उनके साथ फोटो खिंचवाते और हिदायत देते कि जब कतार जम जाए तब तक वे यहीं रहें। इसी तरह मुख्य मन्त्रीजी को लेकर वे प्रदर्शन के समय यहीं आएँगे और कार्यकर्ताओं के साथ उनका फोटो खिंचवाएँगे। फ्लैश का एक ही उजाला कार्यकर्ताओं पर पड़ता और कदाचित् स्वामी की नींव पक्की हो जाती। वे कार्यकर्ता प्राण छोड़ने को तैयार हो जाते पर पार्टी का झण्डा और कदाचित् स्वामी का बैनर छोड़ने को तैयार नही होते। भीड़ का आलम यह था कि कदाचित् स्वामी मन-ही-मन हिसाब लगा रहे थे कि अगर ऐसा ही अनुमान होता तो वे आराम से अपने दो-एक सौ बैनर्स इस भीड़ में तैरा सकते थे। 

प्रदर्शन निकला और ठाठदार निकला। शान से निकला। जहाँ-जहाँ सम्भव हो सका वहाँ-वहाँ मुख्य मन्त्रीजी और अन्य नेताओं ने कार्यकर्ताओं के साथ चलकर नारे लगाए। फोटो खिंचवाए। संघर्ष का आह्वान किया । सरकार की जय बोली। सारे प्रदर्शन में सबसे ज्यादा बैनर्स कदाचित् स्वामी के ही दिखाई दे रहे थे। दूसरे विधायक इस बात को लेकर परेशान थे कि आखिर कदाचित् स्वामीजी ने इतने लोग अपने यहाँ से बुला कैसे लिए? दूसरे दिन के समाचार पत्रों ने प्रदर्शन के जो इने-गिने फोटो छापे उनमें दो फोटो कदाचित् स्वामी और उनके साथ चल रहे समूह के थे। प्रदर्शन का जो विहंगम दृश्य अखबारों ने छापा उसमें कदाचित् स्वामी के बैनर्स बड़ी दूर-दूर तक गिनने लायक दिखाई पड़ रहे थे। तीसरे दिन कदाचित् स्वामी मुख्य मन्त्रीजी से मिलने के लिए निर्धारित समय पर अपने कमरे से चले तो उनके पास एक भारी अलबम था और कार का ड्राइवर कह रहा था कि यह कार एक आर.टी.ओ. साहब ने दिन भर के किराए पर उठाई है। कदाचित् स्वामी के नौकर ने बताया कि आज का खाना विधायक जी का किसी आर.टी.ओ. साहब के साथ शहर के एक होटल में है।

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‘मनुहार भाभी’ की पहली कहानी ‘शोकाकुल’ यहाँ पढ़िए।

‘मनुहार भाभी’ की तीसरी कहानी ‘गच्चा’ यहाँ पढ़िए।



कहानी संग्रह के ब्यौरे
मनुहार भाभी - कहानियाँ
लेखक - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - नीलकंठ प्रकाशन, 1/1079-ई, महरौली, नई दिल्ली-110030
प्रथम संस्करण 2001
मूल्य - 150/- रुपये
सर्वाधिकार - लेखक
मुद्रक - बी. के. ऑफसेट, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032



रतलाम के सुपरिचित रंगकर्मी श्री कैलाश व्यास ने अत्यन्त कृपापूर्वक यह संग्रह उपलब्ध कराया। वे, मध्य प्रदेश सरकार के, उप संचालक अभियोजन  (गृह विभाग) जैसे प्रतिष्ठापूर्ण पद से सेवा निवृत्त हुए हैं। रतलाम में रहते हैं और मोबाइल नम्बर 94251 87102 पर उपलब्ध हैं।



 



 

 

  



     

 

 

 

 


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