ओ अमलतास!

 
  


श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘ओ अमलतास’ की ग्यारहवीं कविता 

यह संग्रह श्री दुष्यन्त कुमार को
समर्पित किया गया है।




ओ अमलतास!

ओ अमलतास!
मत हो उदास
तेरा पंछी कल फिर आयेगा
फिर मीठ सुर में गायेगा
ओ अमलतास ...।।

अम्बर के आँचल में उसका,
कोई नहीं ठिकाना
तेरे ही आँगन में होगा, उसको नीड बनाना
बाँहे पसार
कर इन्तजार
वो टूटे तिनके लायेगा
मीठे सुर में गायेगा
ओ अमलतास! मत हो उदास।।

उदयाचल से अस्ताचल तक,
सूरज जलता जाये
दिशा-दिशा उसके पंखों पर, अंगारे बरसाये
तब बार-बार
दो पल उधार
वो तेरी छैंया चाहेगा
तेरा पंछी कल फिर आयेगा
फिर सुर में गायेगा
ओ अमलतास! मत हो उदास।।

पल दो पल के लिए भले
वह और कहीं उड जाता
(पर) तेरा उसका जनम-जनम का
गीत-प्रीत का नाता
तू डार-डार
कर ले सिंगार
वह चैन यहीं पर पायेगा
तेरा पंछी कल फिर आयेगा
फिर सुर में गायेगा
ओ अमलतास! मत हो उदास।।
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‘ओ अमलतास’ की दसवीं कविता ‘आलिंगन के बाहर भी प्रिय!’ यहाँ पढ़िए

‘ओ अमलतास’ की बारहवीं कविता ‘ओ किरणों! कंचन बरसाओ’ यहाँ पढ़िए 




संग्रह के ब्यौरे
ओ अमलतास (कविताएँ)
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - किशोर समिति, सागर।
प्रथम संस्करण 1981
आवरण - दीपक परसाई/पंचायती राज मुद्रणालय, उज्जैन
सर्वाधिकार - बालकवि बैरागी
मूल्य - दस रुपये
मुद्रण - कोठारी प्रिण्टर्स, उज्जैन।
मुख्य विक्रेता - अनीता प्रकाशन, उज्जैन
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