समाजवाद



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की दसवी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।


समाजवाद

यह साला समाजवाद न कभी आयेगा
न मैं इसे आने दूँगा
जब काम चल जाये केवल शब्द से
तब क्या जरूरत है किसी वाद-फाद की?
इतनी घिसाई की है मैंने
इस शब्द की
कि आकर मुझसे तंग
इसने खुद ही तोड़ लिए
अपने अंग-प्रत्यंग।

अब इसका ‘स’ कहीं तो
‘मा’ कहीं
‘ज’ यहाँ तो ‘वा’ वहाँ
और वो ‘द’
खुद इसके ढूँढ़े नहीं मिल रहा है इसे।

समाज से कह दिया है मैंने कि
भाई समाज! तू यदि पड़ गया
इस ‘वाद’ के चक्कर में
तो सोच ले अपना भविष्य।

बहुत बुरा है यह वाद का विवाद
जब तक मेरी चलेगी
तब तक दूर रखूँगा इस वाद से समाज को
उसी तरह, जैसे कि
दूर रखा है मैंने पेट से अनाज को।
-----


कोई तो समझे’ की नौवी कविता ‘रात से प्रभात तक’ यहाँ पढ़िए 

‘कोई तो समझे’ की ग्यारहवी कविता ‘हाथी’ यहाँ पढ़िए 



संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल




 






















No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मुझे सुधारेगी और समृद्ध करेगी. अग्रिम धन्यवाद एवं आभार.