प्रार्थना प्रभु से यही



श्री बालकवि बैरागी के कविता संग्रह
‘कोई तो समझे’ 
की चौदहवी कविता 

यह कविता संग्रह
(स्व.) श्री संजय गाँधी को 
समर्पित किया गया है।


प्रार्थना प्रभु से यही है

संयमित उल्लास
अनुशासित उमंगें
इन्द्रधनुषी स्वप्न सूर्याेदय सरीखे
दृढ़ चरण उद्दाम ज्वाला-सा धधकता रक्त
रक्त के संकल्प रक्तिम
कुल मिलाकर एक ऊर्जामय प्रभासित प्राण।
मुक्त जिसका मन
मुखर वाणी सुवासित चेतना
निर्बन्ध, गरिमामय गगन निस्सीम
संघर्ष के अमृत फलों से पूर्ण
मेरी मातृ-भू, देश-माता, देश-जननी
आज फिर सन्नद्ध, श्रद्धानत, विनत हो
कर रही स्वागत तुम्हारा
हे मनुज के मुक्ति-दाता दिन!
प्रार्थना प्रभु से यही है आज मेरी
वह हमें दे शक्ति इतनी
कि
जब कभी तुम या तुम्हारा बन्धु-दीन
कोई हुमकता-सा पधारे
कर सके प्रस्तुत हमारा प्राण
वह अकलंक लेखा
कि
देश को हमने दिया क्या?
देश से हमने लिया क्या?
वर्ष भर हमने किया क्या?
और
जन गण मन हमारा
कर्मरत होकर जिया क्या ?
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संग्रह के ब्यौरे

कोई तो समझे - कविताएँ
कवि - बालकवि बैरागी
प्रकाशक - मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन, भोपाल
एकमात्र वितरक - साँची प्रकाशन, भोपाल-आगरा
प्रथम संस्करण , नवम्बर 1980
मूल्य - पच्चीस रुपये मात्र
मुद्रक - चन्द्रा प्रिण्टर्स, भोपाल


 




















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